गेमिंग की लत या लगन? फर्क जानिए

नमस्कार दोस्तों आज के दौर में अगर आप किसी बच्चे, किशोर या यहां तक कि वयस्क से भी बात करें तो 10 में से 7 लोग गेमिंग के शौकीन मिलेंगे। मोबाइल, कंप्यूटर, प्लेस्टेशन—हर जगह गेम्स की भरमार है। मगर सवाल ये है कि ये शौक कब एक पैशन बन जाता है और कब ये लत बनकर हमारी जिंदगी को नुकसान पहुंचाने लगता है, ये समझना बहुत ज़रूरी है। चलिए आज इसी फर्क को साफ़-साफ़ समझते हैं—गेमिंग की लत और गेमिंग की लगन में असली अंतर क्या है।गेमिंग की लत या लगन? फर्क जानिए

लगन यानी जुनून, जो कुछ बनाता है

सबसे पहले बात करते हैं लगन की। जब कोई इंसान गेमिंग को एक पैशन की तरह लेता है, उसे एक स्किल की तरह सीखता है, और उसका उद्देश्य होता है खुद को बेहतर बनाना—तो ये लगन कहलाती है। जैसे कोई बच्चा दिन में कुछ घंटे गेम खेलता है, मगर साथ ही अपने पढ़ाई, परिवार और बाकी जिम्मेदारियों का भी ख्याल रखता है, तो ये एक बैलेंस्ड एप्रोच होती है।

आजकल गेमिंग में करियर भी बन रहा है। बहुत से प्रोफेशनल गेमर्स लाखों रुपये कमा रहे हैं। YouTube चैनल्स, गेमिंग टूर्नामेंट्स, लाइव स्ट्रीमिंग—ये सब अब असली जॉब्स बन चुके हैं। अगर कोई इस दिशा में मेहनत कर रहा है, टाइम-मैनेजमेंट कर रहा है, तो ये लगन है, और इसमें कुछ गलत नहीं है।

लत यानी बेकाबू आदत, जो खोखला कर देती है

अब बात करें लत की। जब कोई इंसान गेमिंग को इस हद तक अपना लेता है कि वो बाकी चीज़ों से कटने लगता है—ना खाने का होश, ना पढ़ाई का ध्यान, ना रिश्तों की परवाह—तो समझ लीजिए कि ये लत बन चुकी है। गेमिंग अब उसके लिए एक ‘जरूरत’ बन जाती है, जैसे किसी को नशे की होती है।

आपने देखा होगा कुछ बच्चे दिन-रात गेम में ही डूबे रहते हैं। उन्हें बाहर खेलना, दोस्तों से मिलना, या यहां तक कि सोना भी जरूरी नहीं लगता। चिड़चिड़े हो जाते हैं, गुस्सा करने लगते हैं जब उनसे मोबाइल छीना जाए। ये साफ़ संकेत हैं कि अब गेमिंग एक नुकसानदायक आदत बन गई है।

फर्क कैसे समझें?

अब सवाल ये आता है कि आखिर कैसे पहचानें कि गेमिंग लगन है या लत? तो इसके लिए कुछ आसान से संकेत देखिए:

  1. समय का संतुलन: अगर गेमिंग का समय सीमित है और बाकी काम भी समय पर हो रहे हैं, तो ये लगन है। लेकिन अगर गेमिंग के लिए नींद, पढ़ाई या काम छोड़ दिया जाए, तो ये लत है।
  2. भावनात्मक असर: अगर गेम ना खेलने पर गुस्सा, बेचैनी या उदासी होने लगे, तो ये लत का संकेत है। मगर अगर गेमिंग से खुशी मिलती है, पर ना खेलने पर भी इंसान नार्मल रहे, तो वो जुनून है।
  3. लक्ष्य और उद्देश्य: लगन में गेमिंग के पीछे कोई मकसद होता है—स्किल सीखना, कॉम्पिटिशन जीतना, चैनल बनाना वगैरह। लत में सिर्फ एक आदत होती है—खेलते रहना, बिना सोचे।
  4. सोशल लाइफ: अगर गेमिंग के चलते परिवार, दोस्त और रिश्ते पीछे छूट रहे हैं, तो ये खतरे की घंटी है। जबकि लगन में इंसान बैलेंस बनाए रखता है।

क्या करें अगर गेमिंग लत बन जाए?

अगर आपको लगे कि आपका बच्चा या खुद आप गेमिंग के चक्कर में ज़रूरत से ज़्यादा समय बर्बाद कर रहे हैं, तो सबसे पहले डरने की जरूरत नहीं है। ये सुधारने लायक चीज है।

टाइम लिमिट सेट करें: मोबाइल में ऐप्स हैं जो स्क्रीन टाइम कंट्रोल कर सकते हैं। शुरुआत यहीं से करें।

रूटीन बनाएं: दिन का एक टाइम गेमिंग के लिए रखें, बाकियों के लिए पढ़ाई, एक्सरसाइज, फैमिली टाइम तय करें।

खुलकर बात करें: बच्चों से डांटने के बजाय उनसे दोस्ती से बात करें। पूछें कि उन्हें गेमिंग में क्या अच्छा लगता है, और उन्हें किन चीज़ों से डर या चिंता होती है।

प्रेरित करें: उन्हें दिखाएं कि दुनिया में और भी क्या-क्या मज़ेदार चीज़ें हैं—खेल, किताबें, ट्रैवल, म्यूज़िक। गेमिंग को एकमात्र एंटरटेनमेंट न बनने दें।

गेमिंग की लत या लगन? फर्क जानिए

आखिर में…

गेमिंग एक बुरी चीज नहीं है। जैसे टीवी, फिल्म या किताबें—ये भी एक माध्यम है सीखने और एंटरटेनमेंट का। मगर जैसे हर चीज़ की एक सीमा होती है, वैसे ही गेमिंग की भी होनी चाहिए। अगर आप या आपके बच्चे उस सीमा में रहते हुए गेमिंग को एंजॉय कर रहे हैं, तो ये लगन है और ये शानदार बात है। मगर अगर गेमिंग ज़िंदगी पर हावी हो गई है, तो वक्त है रुककर सोचने का।

तो अगली बार जब आप या आपके घर में कोई कहे “मुझे गेमिंग बहुत पसंद है”, तो पूछिए—ये लगन है या लत? फर्क जानना और समझना ही सबसे बड़ी समझदारी है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *